Thursday, July 10, 2008

हरकीदून : सुरम्य प्राकृतिक स्थल

- शशिमोहन रावत "पहाड़ी"

मानव प्रकृति प्रेमी होता है. प्रकृति से ही उसे आनन्द की अनुभूति होती है. मानव का प्रकृति से प्रेम भी स्वाभाविक ही है, क्योंकि प्रकृति उसकी सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करती है. इसी प्रकृति ने पर्वतराज हिमालय की गोद में अनेक पर्यटन स्थलों का निर्माण किया है. इन्हीं पर्यटन स्थलों में "हरकीदून" एक अत्यंत रमणीय स्थली है.
हरकीदून सीमान्त जनपद उत्तरकाशी का एक पर्यटन स्थल है. जहां प्रतिवर्ष देश-विदेशों से प्रकृति प्रेमी प्रकृति का अनुपम सौंदर्य निहारने के लिए पहुंचते रहते हैं. यह गोविन्दबल्लभ पंत वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क के लिए भी प्रसिद्ध है. भोजपत्र, बुरांस व देवदार के सघन वृक्षों के अलावा यहां अमूल्य जीवनदायिनी जड़ी-बूटियां, बुग्याल एवं प्राकृतिक फल-फूल देखे जा सकते हैं.
यहां वृक्षों में सर्वाधकि भोजपत्र (बेटुला यूटलिस) तथा खर्सू (क्वेरकस) के वृक्ष पाये जाते हैं. यहां बड़े-बड़े बुग्याल (चारागाह) हैं. हरकीदून में अनेकों किस्म के फूल भी मिलते हैं. हरकीदून को यदि "द्वितीय फूलों की घाटी" कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी. हरकीदून में अनेकों जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं. इस क्षेत्र में जड़ी-बूटी खोदने पर प्रतिबंध है, लेकिन कहा जाता है कि जड़ी-बूटी माफिया यहां चोरी छिपे अपने काम को अंजाम देते रहते है. जून-जुलाई के महीने यहां सर्वाधिक फूल‍िखलते हैं, इस दौरान यहां प्राय: कई विलुप्त होती फूलों की प्रजातियों को देखा जा सकता है. मई-जून व सितम्बर-अक्टूबर में यहां अच्छा मौसम रहता है.
हरकीदून में विभिन्न प्रकार के फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 1 ब्रह्मकमल, 2 फेन कमल, 3 जटामासी, 4 डेन्डलिऑन, 5 अतीस, 6 हिमालयन पॉपी, 7- साइलिम प्रजाति, 8 प्रिमुला प्रजाति आदि.
कैसे जाएं
हरकीदून पहुंचने के लिए देहरादून से मसूरी (36 किमी) कैम्पटी फॉल होते हुए यमुना ब्रिज पहुंचते हैं. यमुना ब्रिज से नैनबाग, डामटा होते हुए नौगांव पहुंचते हैं. नौगांव से दो सड़कें कटती हैं एक बड़कोट व दूसरी पुरोला की ओर मुड़ती है. नौगांव से पुरोला की दूरी महज 20 किमी है. पुरोला एक छोटा-सा एवं सुंदर बाजार है. यह बाजार तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. मूसरी से पुरोला की दूरी लगभग 97 किमी है. यहां नैटवाड़ (26 किमी), सांकरी (11 किमी), तालूका गांव (12 किमी) तक का सफर बस या कार से पूरा करने के उपरांत 13 किमी की दूरी ओसला तक व शेष 11 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है.
तालूका का रास्ता जंगलों से होकर गुजरता है. तालूका से सुपिन नदी के किनारे-किनारे सीमा (ओसला) पहुंचते हैं. ओसला गांव उत्तरकाशी सीमा जनपद का आखिरी गांव है. सांकरी, तालूका तथा सीमा में गढ़वाल मण्डल विकास निगम के रेस्ट हाउस बने हुए हैं. इनमें रहने की उचित व्यवस्था है.
ग्लेश्यिर
यहां से स्वर्णारोहिणी पर्वत (6252 मी.) एवं काला नाग चोटी (6387 मी.) के दर्शन किए जा सकते हैं. जनश्रुति है कि पांडव इसी स्वर्णारोहिणी पर्वत से स्वर्ग गए थे.
वेश-भूषा
यहां के लोग साधारणत: सीधे-सादे होते हैं. सामान्यत वह आम कपड़े ही पहनते हैं. चूंकि यहां काफी ठंड होती है, इसलिए यहां के लोगों के पहनने के कपड़े भेड़-बकरियों के ऊन से बनाये जाते हैं. इन कपड़ों में ऊन की "चोल्टी" (कोट) व संतूब (ऊन का पायजामा) प्रमुख है. महिलाएं अक्सर आभूषण पहने हुए रहती हैं.
ब्रह्मकमल
हरकी दून से कुछ ऊंचाई पर लगभग 14,000 फुट की ऊंचाई पर यह फूल मिलते हैं. ब्रह्मकमल की लोग पूजा करते हैं तथा इस फूल को पवित्र माना जाता है. इसके बारे में यहां तक मान्यता है कि इस फूल के घर में होने से किसी जादू-टोने का असर नहीं होता तथा किसी की बूरी नजर भी नहीं लगती. यह फूल पथरीली मिट्टी में उगता है, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह फूल वहां उगता है जहां गडरिये जंगल में आग जलाते हैं.

1 comment:

Amit K Sagar said...

bahut hi sundar. keep it up.
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ulta teer