Sunday, December 1, 2013

चार दिवसीय अनुभव आधारित कार्यशला

सामाजिक पर्यावरणीय कल्याण समिति सेवा एवं यूकॉस्ट उत्तराखण्ड के तत्वाधान से आयोजित चार दिवसीय (30 नवंबर से 3 दिसंबर 2013) अनुभव आधारित कार्यशला का शुभारम्भ जिला पंचायत अध्यक्ष श्री नारायण सिंह चैहान एवं श्री ए0एस0 तोमर प्रधानाचार्य रा0इ0कालेज डामटा ने दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यषाला में 4 विद्यालय से के 140 बच्चों ने प्रतिभाग लिया कार्यषाला में विभिन्न विद्यालयों के प्रधानाचार्यो एवं डामटा क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों ने प्रतिभाग किया। 
मुख्य अतिथि श्री नारायण सिंह चैहान एवं प्रधानाचार्य ने उत्तरकाशी के सबसे दूर स्थित इण्टर कालेज जिसमें कि 99 प्रतिशत छात्र/छात्रायें अनु0जाति, अनु0जनजाति एवं पिछडी जाति के अध्ययनरत हैं कार्यशाला का आयोजन करने के लिये सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति को धन्यवाद देते हुये कहा कि संस्था ने उन छात्र/छात्राओं की ओर ध्यान दिया जो वास्तव में पिछड़े हुये हैं तथा जिन्‍हें वास्तव में इस प्रकार के कार्यक्रम की आवश्‍कता है। उन्‍होंने 'सेवा' को प्रत्येक 6 माह में डामटा में कार्यशाला का आयोजन करने का अनुरोध किया।
उपाध्यक्ष श्री शोभेन्द्र सिंह राणा ने आस्‍वस्‍थ किया कि सेवा समिति का उद्देश्‍ ही उत्तराखण्ड के दुर्गम व पिछडे क्षेत्रों में कार्य करते हुये उन लोगों तक विकास की योजना पहुचाना है जो विकास से वंचित हैं। इससे पूर्व भी समिति ने यमुना वैली पब्लिक स्कूल, नौगांव व राजकीय इण्टर कालेज, खरादी में इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन विगत 3 वर्षों से करती आ रही है।
प्रथम एजुकेशन फाउण्डेशन एलायन्स फॉर साइन्स के संयोजक श्री आशुतोष उपाध्याय जी ने बताया कि विज्ञान को भाषा की तरह नहीं बल्कि अनुभव करके सीखा जा सकता है।
कार्यशाला में श्री यशवंत काला, श्रीमती दुग्रेशनन्दनी यादव, श्री सूरत सिंह अधिकारी, श्री दिनेश डोभाल, श्री सरदार सिंह राणा, श्री सुमारी, श्री विरेन्द्र रावत, श्री नारायण राणा तथा प्रथम एजुकेशन की सात सदस्यी टीम ने प्रतिभाग किया।

Monday, October 7, 2013

अनुभव आधारित बाल विज्ञान कार्यशाला

 अनुभव आधारित बाल विज्ञान कार्यशाला में मॉडल बनाते बच्‍चे

 अनुभव आधारित बाल विज्ञान कार्यशाला में मानव कंकाल मॉडल के साथ बच्‍चे

 कार्यशाला में मानव अपने मॉडलों को उत्‍साह से दिखाते बच्‍चे

विज्ञान के मॉडल देख चमत्कृत हुए लोग

  • दूर-दराज के स्कूलों में भी आयोजित होंगे विज्ञान शिविर

नौगांव। यहां अनुभव आधारित बाल विज्ञान कार्यशाला में बच्चों द्वारा बनाये गये विज्ञान मॉडलों को देखकर उनके शिक्षक व अभिभावक चमकृत हो गये।
छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने चार दिवसीय इस कार्यशाला में कागज के कंकाल तंत्र, फलाइट व स्ट्रोनॉमी (सूर्य, चांद व पृथ्वी) के मॉडल तैयार किये और उसके बाद उन्हें पेंटिंग के रूप में पेंसिल और रंगों की मदद से कागज पर भी उतारा।

इस विज्ञान शिविर का आयोजन सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) ने प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन, नई दिल्ली व विज्ञान व तकीनीकी परिषद (यूकोस्ट) के सहयोग से यमुना वैली पब्लिक स्कूल नौगांव में किया गया। इसमें नौगांव के आसपास के 11 स्कूलो के 101 छात्रों ने हिस्सा लिया जो कक्षा 6 से कक्षा 8 तक के हैं।

प्रतिभागी छात्रो का कहना है कि खेल-खेल में विज्ञान को सीखने से हमें पता ही नहीं चलता है कि समय कैसे गुजर गया। उनका कहना था कि यदि इस तरह अन्य विषयों की भी पढ़ाई हो तो कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर नहीं रह सकता।

संस्था के सचिव शशि मोहन रावत ने बताया कि इस प्रकार की कार्यशाला इस पिछड़े क्षेत्र के नैनबाग, बड़कोट, पुरोला, मोरी, जखोल, रानाचट्टी तथा लिवाड़ी-फेताड़ी जैसे दूर दराज के स्कूलों में भी आयोजित की जायेंगी। जहां आज भी पहुंचने के लिए दो दिन का पैदल सफर है।

संस्था के संयोजक एवं वरिष्ठ पत्रकार विजेन्द्र रावत ने यूकॉस्ट उत्तराखण्ड, का आभार वक्‍त करते हुए कहा कि यूकॉस्‍ट के अध्यक्ष राजेन्द्र डोभाल ने रवांई-जौनपुर व जौनसार-बावर जैसे पिछड़े क्षेत्रों में बच्चों में विज्ञान प्रतिभा के विकास के लिए एलांयस फॉर साइंस जैसे स्तरीय कार्यक्राम के आयोजन में मदद दी।

प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन, नई दिल्ली के टीम लीडर महेश पोखरिया ने बताया कि यहां के बच्चों में विज्ञान को सीखने की जितनी अधिक जिज्ञासा है उतनी जिज्ञासा शहरों के सुविधा सम्पन्न अंग्रेजी स्कूलों के बच्चों में नहीं है। यही कारण है कि ये अपेक्षाकृत तेजी से सीख रहे हैं। संस्था की योजना है कि इस पिछड़े क्षेत्रों में भविष्य में संस्था विज्ञान मेलों का आयोजन भी करेगी। ताकि छात्रों में विज्ञान के प्रति रूचि पैदा हो सके।

Monday, June 24, 2013

स्थानीय लोगों की कौन सुध लेगा?


- खच्चरों का तो कोई नामलेवा तक नहीं

- शशिमोहन रावत


सचमुच उत्तराखंड का मंजर बहुत खौफनाक है। सरकारी दावे, लोगों के आंसू, राहत पर राजनीति इन सब बातों से इतर आंकड़ों पर गौर करें तो तस्वीर रूह कंपाने वाली है। मरने वाले लोगों की संख्या तो सैकड़ों है ही, लेकिन विभिन्न जिलों के स्थानीय लोग और उनके मवेशी भी आपदाग्रसत हैं। उत्तराखंड में जीवन के पटरी पर लौटने मेें तो अभी बहुत वक्त लगेगा, लेकिन अब जो सचाई सामने आएगी उससे वाकई आप खौफजदा हो जाएंगे। आइए इधर-उधर की बात छोड़ सीधे आंकड़ों पर बात करें।

गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के लिए 14 किमी पैदल मार्ग है। इस मार्ग पर 4500 खच्चर चलते हैं। पीक सीजन की वजह से तबाही वाले उस दिन ये सभी बुक थे। एक यात्री और एक खच्चर वाले को यदि जोड़ा जाए तो इनकी संख्या 9000 हो जाती है। संभवतः किसी किसी खच्चर पर एक व्यक्ति के साथ एक या दो बच्चे भी बैठे हों। अमूमन ऐसा होता है कि एक खच्चर बुक करने के बाद उसमें बच्चे को भी बिठा लिया जाता है। ऐसे में यह संख्या और ज्यादा हो जाती है। यदि हम अकेले खच्चरों की बात करें तो लगभग 4500 खच्चरों का कहीं कोई कोई अतापता नहीं है।

इसी ट्रैक पर 700 डंडी चलती हैं। एक डंडी ले जाने के लिए चार लोग लगते हैं। यात्रा सीजन होने की वजह से उस दिन ये सभी भी बुक थे। यदि इन सबको जोड़ा जाए तो डंडी ले जाने वालों की संख्या 2800 हो जाती है और इसमें बैठे 700 लोगों को मिलाकर कुछ 3500 लोग। तकरीबन पांच सौ कंडी संचालित होती हैं। एक कंडी के साथ दो लोग होते हैं जो एक यात्री को ले जाते हैं। इनकी संख्या भी 1500 के लगभग हो जाती है।
वहां होटलों और धर्मशालाओं में भी लोग ठहरे होंगे। यात्रा सीजन होने की वजह से मार्ग में यात्रा व्यवस्था और अन्य कार्यों के लिए सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी भी जाहिर तौर पर वहां होंगे। यदि तमाम अखबारों और टीवी चैनलों की रिपोर्टों पर गौर करें तो तबाही की उस खौफनाक रात को केदारघाटी में लगभग 30 हजार लोग थे।

अब दबे सुर में एक हजार लोगों के मारे जाने और बारह हजार लोगों निकालने का दावा सरकार कर रही है। केदारघाटी में सभी को निकाला गया है और हर कोई यात्रियों को निकालने की बात कर रहा है। लेकिन उनके बारे में कोई चिंता नहीं है जिनके घर उजड़ गए। परिवार के लोग लापता हैं। उनकी कुल मिलाकर कहीं कोई खबर तक नहीं हैं। यदि देखा जाए तो क्या किसी न्यूज चैनल या अखबार ने वहां से घोड़े-खच्चरों को जिंदा निकालने की बात कही? क्या वहां के स्थानीय लोगों के बारे में कहीं कोई खोज खबर है?

केदारघाटी में तमाम तरह की खबरें सुननें में आ रही हैं कि वहां महिलाओं के छेड़छाड़ और लूटपाट जैसी घटनाओं का जिक्र भी सोशल मीडिया, तमाम न्यूज चैनलों और अखबारों में जरूर हो रहा है। 

लेकिन सवाल है कि क्या यह सब करने वाले उत्तराखंड के ही लोग हैं? यहां होटल, रिसोर्ट और धर्मशालाएं ज्यादातर महानगरों के लोगों की हैं और स्थानीय लोग मात्र सेवादार या नौकर के तौर पर वहां काम करते हैं। वहां लूट-खसोट की सी बातें उठ रही हैं। क्या लूट-खसोट करने वाले स्थानीय लोग हैं? जबकि कई गांव वालों ने फंसे तीर्थयात्रियों को घर में रखा और उन्हें राह दिखाई। कुछ अपवाद हो सकते हैं। वहां के लोग रहने और खाने पीने की वस्तुओं को महंगा भी बेच सकते हैं लेकिन वह महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और लूटपाट जैसी हरकत नहीं कर सकते। सोशल मीडिया पर लोग अपनी आप बीती लिख रहे हैं और ऐसी हरकतों को करने वालों की पहचान छोटी आंख वाले या नेपालियों के रूप में बता भी रहे हैं।

आपदा की इस घड़ी में उत्तराखंड के तमाम लोग वहां फसे लोगों की हर संभव मदद कर रहे हैं। वहां खाने के लंगर लगाए जा रहे हैं। जिस से जो बन पड़ रहा है हर संभव मदद कर रहे हैं।

एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर में सेना ही हर विपत्ति के समय क्यों याद की जाती है? हमारा स्थानीय आपदा प्रबंधन महकमा, स्थानीय पुलिस और प्रशासन क्यों सक्रिय नहीं होता। क्या स्थानीय बेरोजगारों को राहत के काम की ट्रेनिंग नहीं दी जा सकती जिससे आगे फिर यदि ऐसी स्थिति आई तो वह उस से निपटने में सक्षम हो? क्या उनको उनकी कुशलता का परिचय नहीं देना चाहिए? क्या केंद्र सरकार या राज्य सरकार को इस दिशा में नहीं सोचना चाहिए? क्योंकि वहां मौजूद पुलिस को यदि ऐसी किसी मुश्किल से निपटने के लिए ट्रेनिंग दी जाती तो जब तक सेना को पता चलता है या सेना पहुंचती है तब तक वह स्पाॅट पर बहुत कुछ कर सकते हैं?

सरकार को चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो इसके लिए वहां हो रहे अंधाधुंध और बेतरतीब जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्यों को तत्काल प्रभाव से रोका जाए। छोटी परियोजनायें गंगा-यमुना और तमाम तरह की छोटी बड़ी नदियों के प्रवाह के 100 मीटर के दायरें में किसी भी निर्माण को तत्काल प्रभाव से धराशाई किया जाए और नव निर्माण को सख्ती से रोका जाए। नदियों के पानी में सीवेज डालने का सिलसिला बंद किया जाना चाहिए क्योंकि क्योंकि आस्थावान तीर्थयात्री इस गंदगी से बैचेन होते हैं। नदी किरने आश्रम, होटल, धर्मशालाओं का सीवेज नदी में नहीं जाना चाहिए।  जो इलाका अक्सर शांत हुआ करता था वहां आज हर 10-15 मिनट के अंतराल में हेलीकाॅप्टर सेवा शुरू हो गई है, जिसे तत्काल बंद करने की जरूरत है। 

बुजुर्गों के मुताबिक केदारबाबा 50 या 100 या दो सौ साल पहले जैसे थे आज फिर वैसे ही हो गए हैं? सरकार को पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए लेकिन तमाम सावधानी के साथ। कि भविष्य में वहां किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर सख्त पाबंदी हो। वहां यात्रा पर आने और जाने वालों की एक निश्चित संख्या और एक दिन में 500 या 1000 यात्री जाएं और लौट आएं। वहां सिर्फ तीर्थ पुरोहितों के अलावा स्थानीय लोग ही रहें।

Wednesday, March 6, 2013

‘रवाईं आज और कल’ पुस्तक का विमोचन

दीप प्रज्वलि करते हुए मुख्या अतिथि।

 
श्री शकल चन्द रावत, शशि मोहन रावत, यमुना पुत्र सुरेश उनियाल जी महाराज एवं डॉ विरेन्द्र चंद। 

सर्व श्री नारायण सिंह राणा, शकल चन्द रावत, यमुना पुत्र सुरेश उनियाल, एसपी चमोली एवं अन्य स्मारिका का विमोचन करते हुए।





Monday, February 25, 2013

चिंतन शिविर में की रवाईं घाटी के विकास पर चर्चा

नौगांव(उत्तरकाशी)। सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति की ओर से रवाईं घाटी के विकास को लेकर चिंतन शिविर आयोजित किया गया। इस मौके पर ‘रवाईं आज और कल’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
शिविर में मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री नारायण सिंह राणा ने कहा कि रवाईं जौनपुर की संस्कृति की अलग पहचान है। क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। उन्हें आगे आने का मौका मिलना चाहिए। क्षेत्र के विकास तथा दशा-दिशा को लेकर इस तरह के चिंतन शिविर समय-समय पर आयोजित होने चाहिए। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सकल चंद रावत ने कहा कि वर्तमान में जनता के साथ ही स्थानीय संस्कृति का भी पलायन हो रहा है। इसे संरक्षित रखने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। शिविर में जौनपुर की उभरती गायिका रेशमा शाह एवं सुनील बेसारी की टीम में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र रावत के संरक्षण में तैयार हुई ‘रवाईं आज और कल’ पुस्तक का विमोचन किया गया। जिसमें क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति के साथ ही क्षेत्र से जुड़ी अन्य जानकारियों को शामिल किया गया है। शिविर में रवाईं घाटी की उभरती प्रतिभाओं को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर समिति की अध्यक्ष उर्मिला चंद, शशि मोहन रावत, पूर्व डीआईजी एसपी चमोली, अमर सिंह कफोला, अनुपमा रावत, यशोदा नौटियाल, अंबिका चौहान, सीमा रावत भी मौजूद थे।
साभार : अमर उजाला 
http://www.amarujala.com/news/states/uttarakhand/uttarkashi/Uttar-Kashi-59224-17/