Friday, July 4, 2008

शादी

अभी शादी का पहला साल था
मारे खुशी के मेरा बुरा हाल था,
खुशियां कुछ यूं उमड रही थीं
कि संभाले नहीं संभल रही थीं,
सुबह सुबह मैडम का चाय ले के आना,
थोड़ा शर्माते हुए हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना,
मुस्कराते हुए कहना कि...
डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो आपको ऑफिस भी है जाना
घरवाली भगवान का रूप लेकर आई थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते तो नाम उसी का होता था,
एक पल भी दूर जाना दुशवार होता था

पांच साल बाद...
सुबह सुबह मैडम का चाय लेकर आना,
टेबिल पर रखकर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ, तो मुन्ने को स्कूल छोड़ते जाना.
सुनो... एक बार फिर वही आवाज आई,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नहीं चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ने के टीचर को फिर खुद ही संभाल लेना.

न जाने घरवाली कैसा रूप लेके आई थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्हीं का ख्याल आता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है

क्या कभी वो दिन लौट कर आएंगे कि...
हम एक फिर कुवारें हो जाएंगे...

संकलनकर्ता: पहाड़ी भाई

No comments: