Tuesday, July 5, 2011

लंबी उम्र चाहिए, तो हासिल कीजिए हैसियत

अगर आप लंबी उम्र पाना चाहते हैं तो कोशिश कीजिए कि आपको समाज में अच्छा रुतबा हासिल हो जाए। जी हां, एक नई रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि जो लोगजीवन के विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की पाते हैं वे अधिक उम्र तक जीते हैं।
सफलता से बनती है सेहत
युनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर सर माइकल मैरमट पिछले करीब तीन दशक से जीवन संभावनाओं पर शोध कर रहे हैं और 1960 में उन्होंने लंदन में सिविल सेवा के अधिकारियों के स्वास्थ्य और जीवन पर जो शोध किया था वह काफी प्रामाणिक माना जाता है। उस शोध में निष्कर्ष निकाला गया था कि सिविल सेवा में जो अधिकारी जितने ऊंचे ओहदे पर होता है उसका स्वास्थ्य भी उतना ही बेहतर होता है, जिससे लंबी उम्र तय होती है। एक अन्य दिलचस्प निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन अभिनेता-अभिनेत्रियों को ऑस्कर पुरस्कार मिला वे उनसे कुछ ज्यादा साल जिए जो इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए नामांकित तो हुए, लेकिन इसे प्राप्त नहीं कर सके।
धन से ‌नहीं मिलता स्वास्‍थ्य
सर माइकल मैरमट का मानना है कि व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य इस तथ्य से प्रभावित होता है कि समाज में उसकी क्या हैसियत है। सर माइकल ने इस प्रवृत्ति कोस्टेटस सिंड्रोमयानीप्रतिष्ठा प्रतीकका नाम दिया है। यह बात सच है कि किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत तय करने में दो चीजें मुख्य रूप से काम करती हैं कि हमारी अपनी जिंदगी पर हमारा कितना नियंत्रण है और समाज में हमारी क्या भूमिका है। सर माइकल के मुताबिक धन से अच्छा स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता, इसलिए व्यक्ति की आमदनी की भी कोई खास भूमिका नहीं होती।
अच्छे संस्कार हैं उम्र की बुनियाद
इन निष्कर्षों को इस तथ्य से और बल मिलता है कि कई छोटे और गरीब देशों के लोग क्यों अमेरिका और ब्रिटेन के लोगों से ज्यादा उम्र तक जीते हैं? सर माइकल मैरमट का कहना है कि अगर लोगों को अपने जीवन पर ज्यादा नियंत्रण दिया जाए तो उनकी उम्र बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है। जाहिर है, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चित की जाए, कामकाजी लोगों को अपने जीवन पर ज्यादा नियंत्रण मिले तो आदमी लंबी उम्र पा सकते हैं।

साभार : अमर उजाला कॉम्पेक्ट

Saturday, July 2, 2011

लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती


लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती

इस
तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

अभी
जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

ए अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया

ख्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ
माँ से इस तरह लिपटूं कि बच्चा हो जाऊ

'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कराती है

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मुन्नवर राना