Tuesday, December 20, 2011

कैसे कैसे हादसे सहते रहे,
हम यूँही जीते रहे हँसते रहे

उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे

वक्त तो गुजरा मगर कुछ इस तरह
हम चरागों की तरह जलते रहे

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे
- वाजिदा तबस्सुम

जखीरा से साभार

Friday, December 16, 2011

रूठे हो किसलिए?
















चाँद ने कहा, रूठे हो किसलिए?
हमने कहा दिल टूटा है इसलिए.

चाँद ने कहा;
चाहत में ऐसा होता है.
हमने कहा;
चाहत भी तो एक धोखा है.

चाँद ने कहा;
तू उसको भूल जा.
हमने कहा;
तू ये सांसें भी साथ ले जा .

चाँद ने कहा;
दुनिया में कई चेहरे हैं.
हमने कहा;
दिल पे सिर्फ उसी की यादों के पहरे हैं.

चाँद ने कहा;
ये तेरी नादानी है.
हमने कहा;
मत आजमा मुझे इस कदर.
आखिर ये तेरी और मेरी कहानी है.

चाँद ने कहा;
सलाम है तुझे और तेरे प्यार को.
जो बीती तुझ पर मोहब्बत में
तुम क्यों उसको सहते हो?

हमने कहा;
मेरी सांसें तो चलती हैं.
तुझ चाँद की ही यादो से .
तुम दूर गगन में रहते हो.
हम कही ज़मी पर रहते हैं.

चाँद ने कहा;
मेरी सांसें भी चलती हैं.
तेरी यादों से ए-हमदम .
न रूठो तुम अब इस कदर.
हमारी जान जाती है.

हमने कहा;
इस जिंदगी कि रहो में.
कुछ तुम चलो कुछ मैं चलू .
जीवन कभी सूना न हो.
कुछ मैं कहूँ कुछ तुम कहो.


Saturday, September 10, 2011

तू मुझे याद करे और मैं महसूस न करू तो कहना...

फुरसत के लम्हों में कभी याद कर के देख,
आँखों से तेरे आंसू न छलक आएं तो कहना,
चाहत से भी बढ कर चाह है तुझे,
प्यार इतना ज़िन्दगी में मिल जाये तो कहना,
मुश्किल की घडियो मई अपनी पलकें झुका के देख .
उनमें मेरी तस्वीर न समाये तो फिर कहना...
जिंदगी के हर मोड़ पे मेरे प्यार का इम्तहान लेके तो देख...
हर मोड़ पर मेरी चाहत तेरा इंतज़ार करते न मिले तो कहना.
आरजू है एक बार तू मेरा दिल चीर के तो देख.
हर टुकड़े में तेरी तस्वीर नज़र न आये तो कहना...
जिंदगी को कुछ इस तरह सौप दिया है तुझे.
तू मुझे याद करे और मैं महसूस न करू तो कहना...
फुरसत के लम्हों में कभी याद कर के देख,
आँखों से तेरे आंसू न चालक आएं तो कहना.

Thursday, August 18, 2011

मैंने तुझसे बेपनाह मोहब्बत की है

तुम्हारी इज़ाज़त के बिना न चलूँ एक कदम,
तुम से कुछ इस तरह से चाहत की है.
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी का कोई मकसद नहीं,
मैंने कुछ इस तरह तुम्हें पाने की तम्मना की है.
हमारे बीच हैं बंदिशें ज़माने की ,
मैंने फिर भी तुम से बेपनाह मोहब्बत की है.
मेरे दिल में बस जाओ तुम, मेरी धड़कन बनकर,
मैंने दिल कि गहराइयों से ये इबादत की है.
तुम्हारे रूठने का दर्द कितना मुश्किल है,
समझ सको तो महसूस करो,
तेरे बिना दम तोड़ देंगी ये सांसें,
मैंने उस मोहब्बत की कुछ इस तरह से हिफाज़त की है.
वो तस्वीर तेरी यादों की ,
वो अमानत तेरे अरमानों की
तेरी सूरत तेरी सीरत की चाह है मुझको
उसे पाने कि तमना की है.
मैंने तुझसे बेपनाह मोहब्बत की है.
मैंने तुझको पाने की दिल से इबादत की है...
शशि

Tuesday, July 5, 2011

लंबी उम्र चाहिए, तो हासिल कीजिए हैसियत

अगर आप लंबी उम्र पाना चाहते हैं तो कोशिश कीजिए कि आपको समाज में अच्छा रुतबा हासिल हो जाए। जी हां, एक नई रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि जो लोगजीवन के विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की पाते हैं वे अधिक उम्र तक जीते हैं।
सफलता से बनती है सेहत
युनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर सर माइकल मैरमट पिछले करीब तीन दशक से जीवन संभावनाओं पर शोध कर रहे हैं और 1960 में उन्होंने लंदन में सिविल सेवा के अधिकारियों के स्वास्थ्य और जीवन पर जो शोध किया था वह काफी प्रामाणिक माना जाता है। उस शोध में निष्कर्ष निकाला गया था कि सिविल सेवा में जो अधिकारी जितने ऊंचे ओहदे पर होता है उसका स्वास्थ्य भी उतना ही बेहतर होता है, जिससे लंबी उम्र तय होती है। एक अन्य दिलचस्प निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन अभिनेता-अभिनेत्रियों को ऑस्कर पुरस्कार मिला वे उनसे कुछ ज्यादा साल जिए जो इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए नामांकित तो हुए, लेकिन इसे प्राप्त नहीं कर सके।
धन से ‌नहीं मिलता स्वास्‍थ्य
सर माइकल मैरमट का मानना है कि व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य इस तथ्य से प्रभावित होता है कि समाज में उसकी क्या हैसियत है। सर माइकल ने इस प्रवृत्ति कोस्टेटस सिंड्रोमयानीप्रतिष्ठा प्रतीकका नाम दिया है। यह बात सच है कि किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत तय करने में दो चीजें मुख्य रूप से काम करती हैं कि हमारी अपनी जिंदगी पर हमारा कितना नियंत्रण है और समाज में हमारी क्या भूमिका है। सर माइकल के मुताबिक धन से अच्छा स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता, इसलिए व्यक्ति की आमदनी की भी कोई खास भूमिका नहीं होती।
अच्छे संस्कार हैं उम्र की बुनियाद
इन निष्कर्षों को इस तथ्य से और बल मिलता है कि कई छोटे और गरीब देशों के लोग क्यों अमेरिका और ब्रिटेन के लोगों से ज्यादा उम्र तक जीते हैं? सर माइकल मैरमट का कहना है कि अगर लोगों को अपने जीवन पर ज्यादा नियंत्रण दिया जाए तो उनकी उम्र बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है। जाहिर है, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चित की जाए, कामकाजी लोगों को अपने जीवन पर ज्यादा नियंत्रण मिले तो आदमी लंबी उम्र पा सकते हैं।

साभार : अमर उजाला कॉम्पेक्ट

Saturday, July 2, 2011

लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती


लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती

इस
तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

अभी
जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

ए अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया

ख्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ
माँ से इस तरह लिपटूं कि बच्चा हो जाऊ

'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कराती है

-
मुन्नवर राना

Sunday, June 26, 2011

शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

अना[1]की मोहनी[2]सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है

किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत[3]बिगाड़ देती है

इसीलिए तो मैं शोहरत[4]से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

-मुनव्वर राना

शब्दार्थ:

1. ↑ आत्म-सम्मान
2. ↑ मोहक, मोहिनी
3. ↑ शासन
4. ↑ प्रसिद्धि

Friday, June 24, 2011

हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं ! ( मुहाजिर = निर्वासीत )
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं !!

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है !
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं!!

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में !
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं !!

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी ! ( अक़ीदत = विश्वास )
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं !!

किसी की आरज़ू ने पाँवों में ज़ंजीर डाली थी ! ( आरज़ू = इच्छा )
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं!! ( ऊन की तीली = लोकर विनायची काडी / फंदा= टोक, छेडा )

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से! ( सलीक़े से= पद्ध्तशीर )
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं!! (डलिया = टोपली )

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है! ( उन्नाव, मोहान = यु.पी. मधील गाव )
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं!! ( हसरत = इच्छा )

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद!
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं!!

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है !
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं!!

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है! (हिजरत= स्थलांतर )
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं!!

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे!
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं!!

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं!
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं!!

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब! (मज़हब = धर्म)
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं!!

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की !
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं!! (सेहरा = लग्नात गायचे स्तुतीपर गीत)
- मुनव्वर राना

साभार : आखिरी ग़ज़ल
http://bakhtabadnam.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

Wednesday, June 8, 2011

पर्यावरण बचाने के लिए हिमालय के संरक्षण पर जोर

नौगांव (उत्तरकाशी)। सामाजिक एवं पर्यावरण कल्याण समिति द्वारा ‘पर्यावरण, प्राकृतिक आपदा एवं विकास’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में हिमालय के संरक्षण पर जोर दिया गया।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि डीएवी कालेज देहरादून के प्राचार्य प्रो।एपी जोशी ने कहा कि जंगलों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। जल, जंगल व जमीन के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार चारू चंद्र तिवारी ने कहा कि वन एवं पर्यावरण को बचाने में ग्रामीणों की भूमिका महत्वपूर्ण है।विधायक किशोर उपाध्याय ने पर्यावरण संरक्षण के लिए महिला संगठनों को जागरूक करने पर जोर दिया। दूरदर्शन के पूर्व संपादक राजेंद्र धस्माना, पत्रकार विजेंद्र रावत, दिनेश जोशी, शांति ठाकुर आदि ने पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘अपना गांव-अपना वन’ की अवधारणा के साथ लोगों को जागरूक करने की बात कही। इस मौके पर समिति के सचिव शशिमोहन, डा. विरेंद्र चंद्र, डा. रश्मि चंद्र, डा. बचन रावत, रमेश रावत, नगर पंचायत अध्यक्ष बुद्धि सिंह रावत, सकल चंद रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा आदि मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन प्रमोद रावत ने किया।
साभार : अमर उजाला
http://www.amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-17133-17.html

पर्यावरण को बचाने के लिए सभी एनजीओ एकजुट होकर काम करें


विश्व पर्यावरण दिवस पर 'सामाजिक एवं पर्यावरणीय ल्या समिति" द्वारा जनपद उत्तर काशी के विकास खंड नौगांव के बीडीसी हॉल में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि प्रो. एसपी जोशी ने दीप प्रज्जवलित कर की। संगोष्ठी में महिला समूहों द्वारा अतिथियों के स्वागत के लिए स्वागत गान किया गया। संस्था द्वारा विभिन्न क्षेत्रों जैसे - पर्यावरण, कृषि, बागवानी, सामाजिक जागरूकता, स्वास्थ्य, राजनीति, शिक्षा, खेल-कूद के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए कई लोगों को सम्मानित किया गया और अतिथियों का शॉल भेंट करके सम्मान किया गया। इस मौके पर संस्था सचिव शशिमोहन पहाड़ी ने संस्था का संक्षि'त परिचय दिया और भविष्य की कार्य योजनाओं के बारे में जानकारी दी।

संगोष्ठी में संस्था के संरक्षक श्री विजेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसके लिए हिमालय टॉस्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए। यमुना और गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए यमुना घाटी विकास प्राधिकरण का भी गठन होना चाहिए। महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण से संबंधित योजनाएं बनाने में स्थानीय लोगों की राय ली जानी चाहिए।

कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सकल चंद रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सामुहिक रूप से संगठित होकर प्रयास किया जाना चाहिए। रवांई क्षेत्र को एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता हैं। रवांई-जौनपुर अपने आप में एक शोध का केंद्र हैं। आज सहकारिता और सहभागिता विलुप्त होती जा रही है। लोगों के अंदर सेवा भावना पैदा करने की आवश्यकता है। सरकारी काम केवल कागजों में होता है, जबकि गैर सरकारी संगठन ज्यादा प्रभावकारी कार्य कर सकते हैं। अत: इनको बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जंगलों को बचाना है तो किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आज बड़ी-बड़ी कंपिनयों के जाल में किसान फंसता जा रहा हैं उसको घटिया किस्म का बीज और खाद वितरित की जा रही है। इसके लिए किसानों को जागरूक करना होगा।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. एस. पी. जोशी ने बताया कि पर्यावरण एक प्रचलित शब्द है, जो दो घटकों - जैविक और अजैविक से मिलकर बना है। अजैविक घटकों में मिट्टी, पानी और हवा मुख्य हैं और यही जीवन का आधार हैं। इनको संरक्षित किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जंगल वहीं ज्यादा घने हैं, जहां मानव हस्तक्षेप नहीं हुआ। मानव हस्तक्षेप से ही जंगल नष्ट हुए हैं और जैविक घटकों की कमी होने लगी है। उन्होंने बताया कि 50 साल की उम्र का एक पेड़ अपने जीवन काल में 70 लाख रूपए की ऑक्सजीन मानव जाति को देता है और 50 साल में यही पेड़ लगभग 20 लाख रुपए की कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) अवशोषित करता है और मिट्टी के कटाव को रोककर लगभग 5 लाख रुपए की मिट्टी बचाता है।

उन्होंने बताया कि जब भी हमने पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ की तो हमें प्राकृतिक आपदा के रूप में भ्ाारी कीमत चुकानी पड़ी। यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करेंगे तो मानव जाति बची रहेगी। इसके लिए गांव-गांव एवं हर घ्ार-घ्ार में चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष लगाए जाने चाहिए। वृक्षों को बचाने के लिए ग्रामीण स्तर पर महिला मंगल दल एवं महिला समूहों की स्थापना होनी चाहिए, क्योंकि सामाजिक क्षेत्र और प्राकृतिक क्षेत्र को बचाने में महिलाएं सक्षम हैं।

इस अवसर पर दूरदर्शन के पूर्व संपादक श्री राजेन्द्र धस्माना ने कहा कि पर्यावरण, विकास और प्राकृतिक आपदाओं को हमें एक साथ देखना चाहिए, क्योंकि विकास के साथ विस्थापन प्राकृतिक आपदाएं और विकास की वे सारी बीमारियां हैं जो कम या ज्यादा हमारे पूरे जनजीवन को प्रभावित करती हैं। इसलिए जब भी हम विकास की बात करें तब हमें उन खतरों का सामाना भी करना होगा जो विकास के मॉडल से उपजती हैं इसलिए नीति-नियंताओं को चाहिए कि वह जब भी ऐसी परियाजनाओं पर काम करें उसमें जनता के हित सर्वोपरी हों और विस्थापन व प्राकृति संपदा को कम से कम नुकसान हो।

टिहरी के विधायक श्री किशोर उपाध्याय ने बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए अच्छी योजनाएं बनाई जानी चाहिए और पहाड़ों के लिए कोई भी योजना बनने से पहले वहां की भौगोलिक परिस्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। ग्रामीण स्तर पर किसानों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसके लिए चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों को लगाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण का भी प्रयास किया जाना चाहिए।

नगर पंचायत अध्यक्ष बड़कोट श्री बुद्धि सिंह रावत ने बताया कि पर्यावरण को बचाना है तो प्रदूषण को अपने घ्ार से हटाना होगा। उन्हांेने कहा कि पॉलिथीन की थैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

जनपक्ष आजकल के कार्यकारी संपादक श्री चारु तिवारी ने कहा कि स्थानीय धरोहरों को बचाने के प्रयास हों। उन्होंने कहा कि तिलाड़ी शहीदों ने जंगल बचाने की मुहिम छेड़ी थी और आज भी इसकी आवश्यकता है। 70 के दशक में जंगल बचाने के लिए वनांदोलनों का एक दौर चला जिससे चिपको आंदोलन का जन्म हुआ। इसमें महिलाओं और युवाओं ने भारी योगदान दिया। उन्होंने एक तर्क दिया कि एक मैच के दौरान जितनी बिजली एक स्टेडियम में खर्च होती है उससे कम से कम 7 गांवों को बिजली से रोशन किया जा सकता है।

मजदूर नेता प्रेम बल्लभ सुंदरियाल ने कहा कि आज आबादी बढ़ रही है और पानी कम हो रहा हैं इसके लिए सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा और यमुना का जल 30 प्रतिशत आबादी की पानी की आवश्यकता की पूर्ति करता है। सरकार द्वारा बड़े-बड़े डैम बनाकर लोगों को विस्थापित करने का षड्यंत्र किया जा रहा है।

इस मौके पर डा. विरेंद्र चंद्र, डा. रश्मि चंद्र, डा. बचन रावत, रमेश रावत, नगर पंचायत अध्यक्ष बुद्धि सिंह रावत, सकल चंद रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा आदि मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन प्रमोद रावत ने किया।

Friday, May 20, 2011

पृथक जिले के लिए हस्ताक्षर अभियान 25 से

नौगांव (उत्तरकाशी)। यमुना घाटी पृथक जनपद की मांग को लेकर रवांई और जौनपुर के लोग २५ से ३० मई तक यमुनोत्री से लेकर ढाटमीर तक हस्ताक्षर अभियान यात्रा निकालेंगे।

यमुना घाटी विकास संगठन, रवांई लोक कल्याण समिति तथा सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण समिति की ओर से संयुक्त रूप से हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा। इसमें रवांई और जौनपुर के हजारों लोग भागीदारी करेंगे। हस्ताक्षर अभियान यात्रा २५ मई को यमुनोत्री में मां यमुना की पूजा-अर्चना के साथ शुरू होगी। यहां से खरसाली, स्यानाचट्टी, खरादी, बड़कोट, नौगांव, पुरोला, मोरी, नैटवाड़ी, सांकरी, जखोल होते हुए ढाटमीर पहुंचेगी। यात्रा का समापन ३० मई को तिलाड़ी शहीद दिवस के अवसर पर बड़कोट में होगा। क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का कहना है कि यहां की तमाम समस्याओं का समाधान सिर्फ पृथक यमुना घाटी जनपद का गठन ही है। हस्ताक्षर अभियान को पूरी तरह गैर राजनीतिक रखा जाएगा।

साभार : अमर उजाला

http://www।amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-15173-17.html

Wednesday, April 27, 2011

मकाँ के साथ वो पोधा भी जल गया - बशीर बद्र

हर इक चिराग कि लो ऐसी सोई-सोई थी
वो शाम जैसे किसी से बिछड के रोयी थी

नहा गया थे मै कल जुगनुओ कि बारिश में
वो मेरे कंधे पे सर रख के खूब रोयी थी

कदम-कदम पे लहू के निशान ऐसे कैसे है
ये सरजमी तो मेरे आंसुओ ने धोयी थी

मकाँ के साथ वो पोधा भी जल गया जिसमे
महकते फूल थे फूलो में एक तितली थी

खुद उसके बाप ने पहचान कर न पहचाना
वो लड़की पिछले फसादात में जो खोयी थी
- बशीर बद्र

Tuesday, April 5, 2011

मेरे मित्र उमेश कुमार द्वारा मुझे भेजी गई यह कविता जिंदगी बदल रही है. इसका सार है की इंसान की गिन्दगी किस करवट बदलती है, और उसे जिन्दगी में किन किन पड़ावों से गुजरना पड़ता है. मुझे लगा की इसे आप लोगों तक भी पहुँचाया जाय. इसी प्रयास के साथ.

यद ज़िन्दगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से “स्कूल” तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां “मोबाइल शॉप”, “विडियो पार्लर” हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है…

जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी “साइकिल रेस”,
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..

जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी “ट्रेफिक सिग्नल” पे मिलते हैं “हाई” करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, फिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है.
“मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते ”

जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न कि काटो !

Tuesday, January 25, 2011

दिल्ली में होगा सरनौल का पांडव नृत्य


सरनौल गांव के कलाकारों को दिल्ली में अपनी लोकविधा पांडव नृत्य की प्रस्तुति देने का मौका मिला है। आगामी 11 से 16 फरवरी तक आईजीएनसीए (इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट) की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों के लोक कलाकार जुटेंगे। इसमें सरनौल के कलाकार भी प्रतिभाग करेंगे।

महाभारतकाल की विभिन्न कथाओं का लोकमंचों के जरिये प्रस्तुतिकरण पर आधारित इस कार्यक्रम में सरनौल गांव के पांडव नृत्य की भी प्रस्तुति होगी। इसमें कलाकार पांडव नृत्य के विभिन्न पहलुओं की लोकविधा के रूप में प्रस्तुति देंगे। गौरतलब है कि उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में पांडव नृत्य की परंपरा है इसमें अनुष्ठान व रंगमंच के तत्वों का अनूठा मिश्रण है। वहीं सरनौल गांव का पांडव नृत्य अपनी खासियतों के कारण काफी प्रसिद्ध है। सुप्रसिद्ध पांडव नृत्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों सहित इन लोग केरल तथा भोपाल में भी प्रदर्शित कर चुके हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से आये डॉ।सुवर्ण रावत ने बताया कि सरनौल के कलाकार प्रत्येक दिन महाभारत पर आधारित प्रस्तुति देंगे। इनमें पांडव वनवास, जोगटानृत्य, गेडा नृत्य तथा गुप्तवास का मंचन किया जायेगा। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड से प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ.डीआर पुरोहित के निर्देशन में चक्रव्यूह मंचन व श्रीष डोभाल के निर्देशन में गरुड़ व्यूह की भी प्रस्तुति दी जाएगी।

साभार : जागरण