Thursday, July 31, 2008

केदारनाथ : भगवान शिव का पावन धाम


उत्तराखण्ड के चार धामों में से एक प्रमुख धाम केदारनाथ है, जिसका उल्लेख शास्त्रों एवं वेद पुराणों में मिलता है. हिमालय का केदारखण्ड क्षेत्र भगवान विष्णु व भगवान शिव के क्षेत्र के रूप में विख्यात है. शिव व विष्णु एक दूसरे के पूजक एवं पूरक हैं.
केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हिन्दू धर्म में केदारनाथ सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है.
केदारनाथ एक अत्यंत पवित्र दर्शनीय स्थान है, जो चारों ओर से बर्फ की चादरों से ढ़की पहाड़ियों के केन्द्र में स्थित है. वर्तमान में मौजूद मंदिर 8वीं शती का है, जिसे जगद् गुरु शंकराचार्य ने बनवाया था, जो पाण्डवों द्वारा बनाये गए मंदिर के ठीक बगल में स्थित है. मंदिर के अंदर की दीवारों में कई ऐसी आकृतियां उकेरी गई हैं, जिनमें कई पौराणिक कथाएं छिपी हुई हैं. मंदिर के मुख्य द्वार के आगे भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल मूर्ति उनकी सुरक्षा का जिम्मा लिए हुए है. मंदिर का शिवलिंग प्राकृतिक है एवं मंदिर के पीछे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य की समाधि है.
भगवान शिव का यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है. इसे बड़े भारी पत्थरों को तराशकर तैयार किया गया है. किस तरह इतने बड़े पत्थरों को तैयार किया गया होगा, यह अपने आप में एक अजूबा है. मंदिर में पूजा करने के लिए "गर्भगृह' और मंडप है, जहां पर श्रद्धालुजन पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर के अंदर भगवान शिव को सदाशिव के रूप में पूजा जाता है.
स्थिति
जनपद रुद्रप्रयाग स्थित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य केदारनाथ धाम 3584 मी. की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है. केदारनाथ का भव्य एवं आकर्षक मंदिर विशाल ग्रेनाइट शिलाखण्डों से निर्मित है. यहां कई पवित्र कुण्ड हैं. पंडित राहुल सांकृत्यायन के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 10-12वीं शती में हुआ. 66 फुट ऊंचे इस मंदिर के बाहर खुले चबूतरे पर नन्दी की एक विशाल मूर्ति है.
स्थापित
8वीं शती
पौराणिक दंतकथा
मंदिर से जुडी़ कथा के अनुसार द्वापर युग में महाभारत युद्ध के उपरांत गोत्र हत्या के पाप से पाण्डव अत्यन्त दु:खी हुए और वेदव्यासजी की आज्ञा से केदारक्षेत्र में भगवान शिव के दर्शनार्थ आए. भगवान शिव कुलनाशी पाण्डवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे. अतएव वे मायामय महिष का रूप धारण कर केदार अंचल में विचरण करने लगे, बुद्धि योग से पाण्डवों ने जाना कि यही शिव हैं, तो वे मायावी महिष रूपधारी भगवान शिव का पीछा करने लगे, महिष रूपी शिव भूमिगत होने लगे तो पाण्डवों ने दौड़कर महिष की पूंछ पकड़ ली और अति आर्तवाणी से भगवान शिव की स्तुति करने लगे. पाण्डवों की स्तुति से प्रसन्न होकर उसी महिष के पृष्ठ भाग के रूप में भगवान शंकर वहां स्थित हुए एवं भूमि में विलीन भगवान शिव के पाण्डवों को दर्शन हुए तथा अन्य चार केदार मदमहेश्वर में शिव की नाभि प्रकट हुई, तुंगनाथ में भुजाएं, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में जटाएं प्रकट हुईं और ये सब पंच केदार कहलाते हैं.
उसी समय एक आकाशवाणी हुई कि हे पाण्डवों मेरे इसी स्वरूप की पूजा से तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे. तदनंतर पाण्डवो! ने इसी स्वरूप की विधिवत पूजा की तथा गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुए और भगवान केदारनाथ का विशाल एवं भव्य मंदिर बनवाया.
पूजा-अर्चना
केदारनाथ मंदिर में पूजा का समय प्रात: एवं सायंकाल है. सुबह की पूजा निर्वाण दर्शन कहलाती है जबकि शिवपिंड को प्राकृतिक रूप से पूजा जाता है. सायंकालीन पूजा को श्रृंगार दर्शन कहते हैं, जब शिव पिण्ड को फूलों एवं आभूषणों से सजाते हैं. यह पूजा मंत्रोच्चारण, घंटीवादन एवं भक्तों की उपस्थिति में ही सम्पन्न की जाती है.
कपाट खुलने का समय
केदारनाथ मंदिर के खुलने के समय सामान्य तौर पर अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में या मई के प्रथम सप्ताह में होता है. केदारनाथ मंदिर श्री बद्रीनाथ के एक दिन पहले ही खुल जाता है.
क्षेत्रफल
3 वर्ग किमी
मौसम
ग्रीष्म काल, सामान्यत: मई से अगस्त. दिन के समय मनोरम तथा रात के समय ठंड.
तापमान
अधिकतम 17.90 सें. तथा न्यूनतम 5.90 सें..
शीतकाल
सितम्बर से नवम्बर. दिन के समय ठंडा तथा रात के समय काफी सर्द. दिसंबर से मार्च हिमाच्छादित.
भाषा
हिन्दी, अंग्रेजी एवं गढ़वाली.
वेश-भूषा
जून से सितम्बर तक हल्के ऊनी वस्त्र. अप्रैल-मई तथा अक्तूबर-नवम्बर भारी ऊनी वस्त्र.
ठहरने की व्यवस्था
श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ मंदिर कमेटी यात्रा विश्राम गृह, गढ़वाल मण्डल विकास निगम विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह, धर्मशालाएं केदारनाथ में तथा बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग पर समस्त प्रमुख स्थानों पर.
कैसे पहुंचे
वायुमार्ग : जौलीग्रांड देहरादून. केदारनाथ से 251 किमी की दूरी पर. चार्टर्ड सर्विस दिल्ली सरसावा अथवा जौलीग्रांड से केदारनाथ तक उपलब्ध है.
रेल मार्ग : ऋषिकेश अंतिम रेलवे स्टेशन, 234 किमी की दूरी पर. कोटद्वार स्थित अंतिम रेलवे स्टेशन 260 किमी.
सड़क मार्ग : दिल्ली से ऋषिकेश 287 किमी रेल द्वारा तथा 238 सड़क मार्ग द्वारा. केदारनाथ जाने के लिए गौरीकुण्ड से 14 किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. यह मार्ग ऋषिकेश, कोटद्वार, देहरादून, हरिद्वार तथा गढ़वाल एवं कुमाऊं के अन्य महत्वपूर्ण पर्वतीय स्थानों से सड़क मार्ग से जुड़ा है. ऋषिकेश तथा गौरीकुण्ड-बद्रीनाथ जाने तथा वापस आने के लिए प्राइवेट टैक्सियां तथा अन्य हल्के वाहन उपलब्ध रहते हैं. परिवहन व्यय निश्‍िचत नहीं है. केदारनाथ तक यात्रियों को ले जाने तथा वापसी के लिए और सामान ढोने के लिए गौरीकुण्ड से घोड़े, डांडियां आदि उपलब्ध रहती हैं।
प्रस्तुति : रावत शशिमोहन 'पहाड़ी'

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