- महेन्द्र कुमार सिंह
उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में न्याय के देवता के रूप में विख्यात गोल्ज्यू के अल्मोडा़ जनपद के चितई (गैराड़) ताडी़खेत और नैनीताल जिले के घोडा़खाल एवं विनायक प्रसिद्ध प्रतिष्ठित दरबार हैं, जहां लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शरण लेते हैं.
ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को कहीं भी न्याय नहीं मिलता, उनको लोक देवता गोल्ज्यू से न्याय मिलने की पूरी उम्मीद रहती है. यही कारण है कि इनके मंदिर में हजारों की संख्या में लिखित प्रार्थनापत्र सादे कागज और स्टाम्प पेपर में लिखकर दाखिल किए जाते हैं, जिसका वह समय रहते सुनवाई करते हैं और न्याय मिलने पर भक्तगण पीतल का घंटा चंढा़कर अपनी मनोकामना पूरी होने पर उनको धन्यवाद देते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोल्ज्यू का मूल दरबार उत्तराखंड के चम्पावत में स्थित है. जहां यह लोकदेवता अपने राजांगी स्वरूप में विराजमान हैं. अर्थात् उक्त मंदिर में घात पुकार सुनने का प्रावधान नहीं है. उत्तराखंड में इस लोक देवता गोल्ज्यू, ग्वेल, गोलू और गौरिल आदि के नामों से जाना व पूजा जाता है. बटुक भैवर का अवतार माने जाने वाले इनकी पूजा की अपनी अलग व खास परम्परा है, जिसमें 'जागर' व 'धूनी' में देव किसी शरीर में अवतरित होते हैं. इनके मंदिर में तेल का दीपक चौबीस घंटे जलता रहता है. साथ ही मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ इनके दर्शन के लिए लगी रहती है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्तगण न्याय पाने के लिए अपने प्रार्थना पत्र इनके दरबार में दे जाते हैं, उनका वे समय रहते सुनवाई करते हैं और न्याय प्रदान करते हैं. इनका एक मंदिर तराई के किच्छा स्थित मल्ली देवरिया गांव में भी है, जहां दूर-दराज से भक्तगण आते हैं और चितई तथा घोडा़खाल की भांति यहां भी दरबार लगता है.
चितई के गोलू देवता का मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 6 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ रोड पर स्थित है. चितई स्थित इनका मंदिर अष्टकोणीय आकार का बना है. यहां के मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है, लेकिन बीसवीं शदी के शुरुआत में इनका जीर्णोद्धार कराया गया था. इस मंदिर को चंद शासकों के समय बनाया गया था. इस मंदिर में कुमाऊं क्षेत्र विशेषकर अल्मोडा़, रानीखेत, बागेश्वर, जागेश्वर, और पिथौरागढ़ के रास्ते अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक इस मंदिर के दर्शन का लाभ उठाते हैं.
यहां आने वाले पर्यटक और तीर्थयात्री इसे घंटों वाला मंदिर भी कहते हैं. क्योंकि इस मंदिर में लगे घंटों की संख्या सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों में है. जब यहां टंगे घंटों की संख्या अधिक हो जाती है तो उन्हें गलाकर बड़े आकार का बनवाकर चढ़ाया जाता है जिसका वजन किलो नहीं बल्कि कुंटलों में होता है. वैसे तो संपर्ण उत्तराखंड को ही देवभूमि कहा जाता है, लेकिन इस लोकदेवता की अलग पहचान है.
लेखक दैनिक हिन्दुस्तान में मुख्य उप संपादक हैं
ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को कहीं भी न्याय नहीं मिलता, उनको लोक देवता गोल्ज्यू से न्याय मिलने की पूरी उम्मीद रहती है. यही कारण है कि इनके मंदिर में हजारों की संख्या में लिखित प्रार्थनापत्र सादे कागज और स्टाम्प पेपर में लिखकर दाखिल किए जाते हैं, जिसका वह समय रहते सुनवाई करते हैं और न्याय मिलने पर भक्तगण पीतल का घंटा चंढा़कर अपनी मनोकामना पूरी होने पर उनको धन्यवाद देते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोल्ज्यू का मूल दरबार उत्तराखंड के चम्पावत में स्थित है. जहां यह लोकदेवता अपने राजांगी स्वरूप में विराजमान हैं. अर्थात् उक्त मंदिर में घात पुकार सुनने का प्रावधान नहीं है. उत्तराखंड में इस लोक देवता गोल्ज्यू, ग्वेल, गोलू और गौरिल आदि के नामों से जाना व पूजा जाता है. बटुक भैवर का अवतार माने जाने वाले इनकी पूजा की अपनी अलग व खास परम्परा है, जिसमें 'जागर' व 'धूनी' में देव किसी शरीर में अवतरित होते हैं. इनके मंदिर में तेल का दीपक चौबीस घंटे जलता रहता है. साथ ही मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ इनके दर्शन के लिए लगी रहती है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्तगण न्याय पाने के लिए अपने प्रार्थना पत्र इनके दरबार में दे जाते हैं, उनका वे समय रहते सुनवाई करते हैं और न्याय प्रदान करते हैं. इनका एक मंदिर तराई के किच्छा स्थित मल्ली देवरिया गांव में भी है, जहां दूर-दराज से भक्तगण आते हैं और चितई तथा घोडा़खाल की भांति यहां भी दरबार लगता है.
चितई के गोलू देवता का मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 6 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ रोड पर स्थित है. चितई स्थित इनका मंदिर अष्टकोणीय आकार का बना है. यहां के मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है, लेकिन बीसवीं शदी के शुरुआत में इनका जीर्णोद्धार कराया गया था. इस मंदिर को चंद शासकों के समय बनाया गया था. इस मंदिर में कुमाऊं क्षेत्र विशेषकर अल्मोडा़, रानीखेत, बागेश्वर, जागेश्वर, और पिथौरागढ़ के रास्ते अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक इस मंदिर के दर्शन का लाभ उठाते हैं.
यहां आने वाले पर्यटक और तीर्थयात्री इसे घंटों वाला मंदिर भी कहते हैं. क्योंकि इस मंदिर में लगे घंटों की संख्या सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों में है. जब यहां टंगे घंटों की संख्या अधिक हो जाती है तो उन्हें गलाकर बड़े आकार का बनवाकर चढ़ाया जाता है जिसका वजन किलो नहीं बल्कि कुंटलों में होता है. वैसे तो संपर्ण उत्तराखंड को ही देवभूमि कहा जाता है, लेकिन इस लोकदेवता की अलग पहचान है.
लेखक दैनिक हिन्दुस्तान में मुख्य उप संपादक हैं
1 comment:
गोलज्यु की जय| आप के ब्लॉग में आकर अच्छा लगा|धन्यवाद|
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