उत्तरकाशी। पहाड़ में सदियों से चली आ रही मान्यताएं आज भी जिंदा है। इसका जीता जागता उदाहरण प्राचीन संग्रामी गांव में देखने को मिलता है। यहां पंडित की पोथी, डाक्टर की दवा और कोतवाल का डंडा यहां काम नहीं आता है। गांव में कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है।
देवभूमि उत्तराखंड के उत्तर में उत्तरकाशी के निकट वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बांयी ओर संग्राली गांव में कंडार देवता का प्राचीन मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र ही नहीं, बल्कि एक न्यायालय भी है। इस न्यायालय में फैसले कागजों में नहीं होते और न ही वकीलों की कार्यवाही होती है। यहां फैसला देवता की डोली सुनाती है। संग्राली गांव के लोग जन्मपत्री, विवाह, मुंडन, धार्मिक अनुष्ठान, जनेऊ समेत अन्य संस्कारों की तिथि तय करने के लिए पंडित की तलाश नहीं करते। कंडार देवता मंदिर के पंचायती प्रांगण में जमा होकर ग्रामीण डोली को कंधे पर रख कंडार देवता का स्मरण करते हैं। इस दौरान डोली के डोलने से इसका अग्रभाग जमीन का स्पर्श करता है। इससे रेखाएं खिंचने लगती हैं। इन रेखाओं में तिथि व समय लिख जाता है। आस्था है कि जन्म कुंडली भी जमीन पर रेखाएं खींचकर डोली स्वयं ही बना देती है। कई ऐसे जोड़ों का विवाह भी कंडार देवता करवा चुका है, जिनकी जन्मपत्री को देखने के बाद पंडितों ने स्पष्ट कह दिया था कि विवाह हो ही नहीं सकता। मात्र यहीं नहीं बल्कि गांव में जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे उपचार के लिए कंडार देवता के पास ले जाया जाता है। सिरर्दद, बुखार, दांत दर्द तो ऐसे दूर होता है जैसे पहले रोगी को यह दर्द था ही नहीं।
साभार : याहू दैनिक जागरण
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