डॉ. कलाम के बहाने, घुत्तू भिलंग घाटी की सैर...
- शशि मोहन रवांल्टा
घुत्तू भिलंग घाटी
पिछले सप्ताह भिलंग घाटी में जाने को अवसर प्राप्त हुआ। मौका था ‘भारतरत्न एवं पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. कलाम की जयंती’ (अंतरराष्ट्रीय छात्र दिवस) पर ‘राष्ट्रीय बाल प्रतिभा एवं वरिष्ट नागरिक सम्मान समारोह’ का। साथ ही सूर्यप्रकाश सेमवाल और रमेश सेमवाल जी द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए स्वास्थ्य कैंप का आयोजन भी किया गया था।
कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि
इस कार्यक्रम के
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हेमचन्द्र सकलानी
जी थे। मुझे बतौर अथिति आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम पर्वतीय लोकविकास समिति
एवं क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों द्वारा आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में बच्चों
द्वारा बहुत ही सुंदर और आकर्षक प्रस्तुतियां पेश की गईं। कार्यक्रम में स्थानीय
स्कूलों के बच्चों ने प्रतिभाग कर सुंदर एवं आकर्षक प्रस्तुतियां दी। इस बारे
में जब आयोजकों और इंटर कॉलेज घुत्तू, भिलंग के प्राचार्य और शिक्षकों से बात हुई
तो उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम बच्चों ने कुछ ही दिनों में तैयार किया है,
क्योंकि आजकल यहां परीक्षाएं चल रही हैं इस वजह से छात्रों को तैयारी का ज्यादा
मौका नहीं मिल पाया।
स्वागत गान प्रस्तुत करतीछात्राएं
कार्यक्रम की आकर्षक
प्रस्तुतियों को देखकर मैं अचम्भित था। बच्चों ने यदि मात्र दो दिन में इतनी
सुंदर प्रस्तुतियां प्रस्तुत कीं। यदि इनकों एक-दो सप्ताह का समय मिल गया होता
तो कार्यक्रम मेरी कल्पना से भी ज्यादा आकर्षक होता।
कार्यक्रम की शुरुआत
स्वागत गान-
आवा श्रीमान आसन बिराजा, सुस्वागतम च,
पावन पर्व धेला धमाल, सुस्वागतम च, सुस्वागतम च,
दानस्याणू तैं सेवा स्वीकार, छोटा भुलों थैं जियाभोरी प्यार
ब्यैणियों की जयजयकार, ब्यैणियों की जयजयकार
आवा श्रीमान आसन बिराजा, सुस्वागतम च…..
मुझे बतौर दर्शक कई
छोटे-बड़े कार्यक्रमों में अक्सर जाने का अवसर अक्सर प्राप्त होता है। हर
कार्यक्रम में की अपनी एक पहचान होती है, शायद स्वागत गान भी अक्सर कार्यक्रमों
में गाया अथवा बजाया जाता है, लेकिन इस कार्यक्रम का स्वागत गान इस मायने में खास
था कि यह पूर्णत: गढ़वाली भाषा में और शब्दों पर आप ध्यान दें तो बहुत सुंदर शब्दों
के साथ इसकी रचना की गई है।
पावन मेरू उत्तराखंड गीत की प्रसतुति
इसके बाद देवताओं
पैटावा कैलाश, हिमालय पूजण कैलाश…. गाने तो मुझे बहुत कुछ घूत्तु भिलंग
घाटी और खतलिंग की घाटियों से रू-ब-रू करवाया। इस गांव में क्षेत्र के देवी-देवताओं,
घाटियों और गंगी गांव तथा बद्री-केदार और गंगा-जमुना का बहुत ही सुंदर शब्दों में
वर्णन किया गया है।
यकिन मानिए यदि आप
ये गीत सुनेंगे तो आपको खुद ही तय कर पाएंगे कि गीत को कितने सुंदर शब्दों में
वर्णित किया गया है और किस तरह क्षेत्र और उत्तराखंड के नदी घाटियों और देवताओं
का स्मरण किया गया है। इस गीत की खास बात यह भी थी कि यह छात्राओं द्वारा खुद ही
गाया गया था।
पावन मेरू उत्तराखंड गीत की प्रसतुति
प्रतियोगिता की
निर्णायक मंडली ने पावन मेरा उत्तराखंड, गढ़भूमि गढ़देश को प्रथम पुरस्कार से
नवाजा। यह गाना डीजे पर बजाया जा रहा था, लेकिन बच्चों ने इस गीत के हर पहलू को
साक्षात मंच पर उतारा जिसमें उन्होंने श्रीदेव सुमन से लेकर माधोसिंह भण्डारी और
तीलू रौतेली के पात्रों का सबको दर्शन कराए।
ठंडो रे ठंडों गीत प्रस्तुति देती छात्राएं
अंत में....
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