बाल मजदूरी को लेकर आए दिन अखबारों में खबरें पढ़ने को मिलती हैं. आए दिन कई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ये दावे करते हैं कि हमने इतने बच्चे मुक्त कराए. लेकिन क्या कभी आपको यह सुनने या पढ़ने को मिला है कि जिन बाल मजदूरों को मुक्त कराया बाद में उनका क्या हुआ? अगर बाल सुधार ग़ृह भेजे गए तो क्या वहां भेजे जाने के बाद उनके जीवन में कोई सुधार आया? शायद नहीं, क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि जिन बच्चों को एनजीओ मुक्त कराते हैं, वे एनजीओ पुलिस बुलाने और थाने में मीडिया के सामने बच्चों के बीच फोटो खिंचवाने के बाद बच्चों के रहन-सहन और खान-पान व दुख-दर्द की सारी जिम्मेदारी पुलिस को सौंपकर चलते बनते हैं अपने एसी कार्यालयों में ऐसे ही अन्य बाल मजदूरों का 'उद्धार' करने की योजना बनाने.
एनजीओ की इन कारनामों के बाद बच्चों पर दोहरी मार पड़ती है. न तो उनके पास काम रहता है, न ही कोई ठिकाना. पेट भरने का साधन तो पहले ही छिन चुका होता है. उनकी इस दशा के समय तब कोई एनजीओ सामने नहीं आती. वे एक बार फिर उसी जगह पहुंच जाते हैं जहां से उन्होंने अपनी जिंदगी का कांटोंभरा सफर शुरू किया होता है.
देश का भविष्य कहे जाने वाले ये बच्चे देश के दूसरे राज्यों से अपने और अपने परिवार का पेट भरने, छोटा-मोटा काम सीखने की ललक लेकर दिल्ली जैसे महानगरों में आते हैं. काम मिलता है, काम सीखते हैं और पेट भी भरते हैं. सभी ठीक-ठाक चल रहा होता है कि तभी सिर्फ मीडिया में वाहवाही लूटने और अपनी दुकानदारी चलाने वाले ये एनजीओ बचपन बचाओ के नाम पर उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं. और वे बच्चे फिर उसी चौराहे पर आ खड़े होते हैं.
क्या कभी ये एनजीओ उन बाल मजदूरों को मुक्त कराने के बाद उनकी सुध लेते हैं. क्या कभी उनके भविष्य के बारे में कोई योजना चलाते हैं. क्या कभी इन्होंने किसी बाल मजदूर का भरण-पोषण का जिम्मा उठाया है. हां, इतना जरूर है कि बचपन बचाओ के नाम पर इनको बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है.
बाल सुधार गृह में इनकी क्या स्थिति होती है. ये सभी जानते हैं. क्या इसमें किसी बच्चे के जीवन में कोई सुधार आया है? चलो मान लेते हैं कि बाल सुधार गृह में ये बच्चे खुश हैं लेकिन कब तक? तब तक जब तक ये बाल सुधार गृह में है, वहां से निकलते ही ये फिर रोड पर आ जाते हैं. इनके सामने एक नहीं बल्कि कई संकट आ खड़े होते हैं. खाने-पीने, रहने-सोने जैसी तमाम जरूरतों के लिए इन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अभी हाल में हाईकोर्ट ने कहा है कि बाल मजदूरी को खत्म किया जाए. खंडपीठ ने कहा कि आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं. बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि उन्हें शिक्षित किया जाए न कि वे शोषण का शिकार हो जांए. खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि वास्तव में बच्चे समुदाय की सबसे बेशकीमती चीज हैं. शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व न होने के कारण बच्चे विशेष ध्यान और संरक्षण पाने के हकदार हैं. हमारे देश में यह समस्या काफी गंभीर हैं क्योंकि यहां इसका मुख्य कारण लोगों का अशिक्षित होना है.
कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन क्या भारत जैसे विकासशील देश में यह सब हो पाना संभव है जहां की करीब आधी आबादी गरीबी और अशिक्षा का दंश झेल रही हो.
क्या हमने कभी यह गौर किया है कि आखिर ये बाल मजदूर आए कहां से, इनकी क्या मजबूरी, लाचारी है. इसके पीछे जरूर कोई न कोई कारण होगा, जिसके चलते वे यह सब करने को मजबूर होते हैं.
सवाल यह पैदा होता है कि इनको मुक्त कराने के बाद इनका क्या होता है. इनको मुक्त तो करा दिया जाता है लेकिन इनके सामने जो रोजी रोटी का संकट खड़ा होता है उसके बारे में कोई नहीं सोचता. एनजीओ को सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना होता है सो वे करते हैं. फिर ये बच्चे चाहे जीएं या मरे, इनसे इनको कोई लेना-देना नहीं होता. इनको तो सिर्फ कागजों में खाना-पूर्ति करनी होती है अपनी प्रसिद्धि चाहिए होती है, सरकार से ईनाम और अनुदान चाहिए होता है. जिससे इनका अपना जीवन मजे में चलता है समाज में धाक और सम्मान रहता है. क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी तथाकथित खतरनाक काम में लगे इन बाल मजदूरों को सही ढंग से रोजगारपरक शिक्षा-प्रशिक्षण दिया जाए.
यकीन मानिए इनमें कई बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने घरों को पैसे भेजते रहते हैं. कई ऐसे हैं जो खुद मेहनत करके अपने छोटे भाई-बहनों का खर्चा उठा रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि बाल मजदूरी को सही ठहराया जाए, लेकिन यह चिंतनीय विषय है कि इसकी हकीकत क्या है?
हम भी बाल मजदूरी के खिलाफ हैं, लेकिन उनका और उनके चंद रुपयों से पलने वाले लोगों का क्या होगा?
हमें अपने विचार जरूर भेजिए।
देश का भविष्य कहे जाने वाले ये बच्चे देश के दूसरे राज्यों से अपने और अपने परिवार का पेट भरने, छोटा-मोटा काम सीखने की ललक लेकर दिल्ली जैसे महानगरों में आते हैं. काम मिलता है, काम सीखते हैं और पेट भी भरते हैं. सभी ठीक-ठाक चल रहा होता है कि तभी सिर्फ मीडिया में वाहवाही लूटने और अपनी दुकानदारी चलाने वाले ये एनजीओ बचपन बचाओ के नाम पर उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं. और वे बच्चे फिर उसी चौराहे पर आ खड़े होते हैं.
क्या कभी ये एनजीओ उन बाल मजदूरों को मुक्त कराने के बाद उनकी सुध लेते हैं. क्या कभी उनके भविष्य के बारे में कोई योजना चलाते हैं. क्या कभी इन्होंने किसी बाल मजदूर का भरण-पोषण का जिम्मा उठाया है. हां, इतना जरूर है कि बचपन बचाओ के नाम पर इनको बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है.
बाल सुधार गृह में इनकी क्या स्थिति होती है. ये सभी जानते हैं. क्या इसमें किसी बच्चे के जीवन में कोई सुधार आया है? चलो मान लेते हैं कि बाल सुधार गृह में ये बच्चे खुश हैं लेकिन कब तक? तब तक जब तक ये बाल सुधार गृह में है, वहां से निकलते ही ये फिर रोड पर आ जाते हैं. इनके सामने एक नहीं बल्कि कई संकट आ खड़े होते हैं. खाने-पीने, रहने-सोने जैसी तमाम जरूरतों के लिए इन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अभी हाल में हाईकोर्ट ने कहा है कि बाल मजदूरी को खत्म किया जाए. खंडपीठ ने कहा कि आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं. बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि उन्हें शिक्षित किया जाए न कि वे शोषण का शिकार हो जांए. खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि वास्तव में बच्चे समुदाय की सबसे बेशकीमती चीज हैं. शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व न होने के कारण बच्चे विशेष ध्यान और संरक्षण पाने के हकदार हैं. हमारे देश में यह समस्या काफी गंभीर हैं क्योंकि यहां इसका मुख्य कारण लोगों का अशिक्षित होना है.
कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन क्या भारत जैसे विकासशील देश में यह सब हो पाना संभव है जहां की करीब आधी आबादी गरीबी और अशिक्षा का दंश झेल रही हो.
क्या हमने कभी यह गौर किया है कि आखिर ये बाल मजदूर आए कहां से, इनकी क्या मजबूरी, लाचारी है. इसके पीछे जरूर कोई न कोई कारण होगा, जिसके चलते वे यह सब करने को मजबूर होते हैं.
सवाल यह पैदा होता है कि इनको मुक्त कराने के बाद इनका क्या होता है. इनको मुक्त तो करा दिया जाता है लेकिन इनके सामने जो रोजी रोटी का संकट खड़ा होता है उसके बारे में कोई नहीं सोचता. एनजीओ को सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना होता है सो वे करते हैं. फिर ये बच्चे चाहे जीएं या मरे, इनसे इनको कोई लेना-देना नहीं होता. इनको तो सिर्फ कागजों में खाना-पूर्ति करनी होती है अपनी प्रसिद्धि चाहिए होती है, सरकार से ईनाम और अनुदान चाहिए होता है. जिससे इनका अपना जीवन मजे में चलता है समाज में धाक और सम्मान रहता है. क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी तथाकथित खतरनाक काम में लगे इन बाल मजदूरों को सही ढंग से रोजगारपरक शिक्षा-प्रशिक्षण दिया जाए.
यकीन मानिए इनमें कई बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने घरों को पैसे भेजते रहते हैं. कई ऐसे हैं जो खुद मेहनत करके अपने छोटे भाई-बहनों का खर्चा उठा रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि बाल मजदूरी को सही ठहराया जाए, लेकिन यह चिंतनीय विषय है कि इसकी हकीकत क्या है?
हम भी बाल मजदूरी के खिलाफ हैं, लेकिन उनका और उनके चंद रुपयों से पलने वाले लोगों का क्या होगा?
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रावत शशिमोहन पहाड़ी
2 comments:
After almost 200 years, slavery still has not been fully abolished. Members of today's modern civilization are still actively involve in slavery in the form of child labor. Most of the domestic servants are are children under the age of 15 who are forced to work in households or factories against their own will for promise of pay or remuneration or no compensation at all.
But, we cant blame employers only. We must get to the bottom of this social problem. Is only the Employer alone responsible for exploitation??? What are reasons for to struck these child in this bloody trap.
Sometime, a child adopts labourship on his own for the sake of satisfactory earning, happiness of family members, by sympathy of others or due to slavery.
Here satisfactory earning is to help himself for self improvement. It is like part time job. We can see many child do work for the fun. So it cant be taken as child labor.
Second is happiness of family. We can see many child gets involved in child laborship only for the sake of happiness of the family. They adopt it to help their family at economic stand. And, no doubt, they put their own childhood days on stack for others.
Its really a great sacrifice. We need to salute such brave guys..
Third one is Sympathy of employer. Sometime we want to help poor child by offering them employment. We give them employment, but if later on this become a repeating history of exploitation then this is really ridiculous to show sympathy by offering employment to such needy people.
But some people really do different which becomes history. I remember a movie, The Schindler's List (1993)... this movie is based on story of jewish oppression (यहूदी दमन). In this movie, the employer Mr. Schindler, who was a German Businessmen, saved many jewish child by taking advantages through Child Labor. He kept the children deliberately made to work so that brutal german soldiers can not kill them. Its really an appreciating story.
One more fact is slavery, a complete violation of human rights. The Governments have the moral obligation to protect its society from exploitation of not only employment conditions imposed by employers from multinational corporations, but also from its own indigenous business. But even after too many years of freedom, in INDIA, slavery can be found in interior regions of the country, specially in villages.
Now Child Labor has become a serious social problem but today child labor play a major role in the economy of many countries. child labor got introduced with the rise of industrial production and capitalism. With the Industrial Revolution, machinery took over; children often ten years of age became specialist in handling such machines. It is assumed that a child labor should not be paid equally to the adult labor, even after his hard work and extra ordinary performance at workplace. Which is really unfair.
Even though the problem of child labor is indeed a pressing one, the question is how can put an end to it?
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