Sunday, June 26, 2011

शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

अना[1]की मोहनी[2]सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है

किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत[3]बिगाड़ देती है

इसीलिए तो मैं शोहरत[4]से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

-मुनव्वर राना

शब्दार्थ:

1. ↑ आत्म-सम्मान
2. ↑ मोहक, मोहिनी
3. ↑ शासन
4. ↑ प्रसिद्धि

Friday, June 24, 2011

हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं ! ( मुहाजिर = निर्वासीत )
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं !!

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है !
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं!!

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में !
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं !!

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी ! ( अक़ीदत = विश्वास )
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं !!

किसी की आरज़ू ने पाँवों में ज़ंजीर डाली थी ! ( आरज़ू = इच्छा )
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं!! ( ऊन की तीली = लोकर विनायची काडी / फंदा= टोक, छेडा )

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से! ( सलीक़े से= पद्ध्तशीर )
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं!! (डलिया = टोपली )

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है! ( उन्नाव, मोहान = यु.पी. मधील गाव )
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं!! ( हसरत = इच्छा )

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद!
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं!!

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है !
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं!!

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है! (हिजरत= स्थलांतर )
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं!!

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे!
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं!!

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं!
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं!!

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब! (मज़हब = धर्म)
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं!!

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की !
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं!! (सेहरा = लग्नात गायचे स्तुतीपर गीत)
- मुनव्वर राना

साभार : आखिरी ग़ज़ल
http://bakhtabadnam.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

Wednesday, June 8, 2011

पर्यावरण बचाने के लिए हिमालय के संरक्षण पर जोर

नौगांव (उत्तरकाशी)। सामाजिक एवं पर्यावरण कल्याण समिति द्वारा ‘पर्यावरण, प्राकृतिक आपदा एवं विकास’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में हिमालय के संरक्षण पर जोर दिया गया।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि डीएवी कालेज देहरादून के प्राचार्य प्रो।एपी जोशी ने कहा कि जंगलों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। जल, जंगल व जमीन के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार चारू चंद्र तिवारी ने कहा कि वन एवं पर्यावरण को बचाने में ग्रामीणों की भूमिका महत्वपूर्ण है।विधायक किशोर उपाध्याय ने पर्यावरण संरक्षण के लिए महिला संगठनों को जागरूक करने पर जोर दिया। दूरदर्शन के पूर्व संपादक राजेंद्र धस्माना, पत्रकार विजेंद्र रावत, दिनेश जोशी, शांति ठाकुर आदि ने पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘अपना गांव-अपना वन’ की अवधारणा के साथ लोगों को जागरूक करने की बात कही। इस मौके पर समिति के सचिव शशिमोहन, डा. विरेंद्र चंद्र, डा. रश्मि चंद्र, डा. बचन रावत, रमेश रावत, नगर पंचायत अध्यक्ष बुद्धि सिंह रावत, सकल चंद रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा आदि मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन प्रमोद रावत ने किया।
साभार : अमर उजाला
http://www.amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-17133-17.html

पर्यावरण को बचाने के लिए सभी एनजीओ एकजुट होकर काम करें


विश्व पर्यावरण दिवस पर 'सामाजिक एवं पर्यावरणीय ल्या समिति" द्वारा जनपद उत्तर काशी के विकास खंड नौगांव के बीडीसी हॉल में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि प्रो. एसपी जोशी ने दीप प्रज्जवलित कर की। संगोष्ठी में महिला समूहों द्वारा अतिथियों के स्वागत के लिए स्वागत गान किया गया। संस्था द्वारा विभिन्न क्षेत्रों जैसे - पर्यावरण, कृषि, बागवानी, सामाजिक जागरूकता, स्वास्थ्य, राजनीति, शिक्षा, खेल-कूद के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए कई लोगों को सम्मानित किया गया और अतिथियों का शॉल भेंट करके सम्मान किया गया। इस मौके पर संस्था सचिव शशिमोहन पहाड़ी ने संस्था का संक्षि'त परिचय दिया और भविष्य की कार्य योजनाओं के बारे में जानकारी दी।

संगोष्ठी में संस्था के संरक्षक श्री विजेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसके लिए हिमालय टॉस्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए। यमुना और गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए यमुना घाटी विकास प्राधिकरण का भी गठन होना चाहिए। महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण से संबंधित योजनाएं बनाने में स्थानीय लोगों की राय ली जानी चाहिए।

कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सकल चंद रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सामुहिक रूप से संगठित होकर प्रयास किया जाना चाहिए। रवांई क्षेत्र को एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता हैं। रवांई-जौनपुर अपने आप में एक शोध का केंद्र हैं। आज सहकारिता और सहभागिता विलुप्त होती जा रही है। लोगों के अंदर सेवा भावना पैदा करने की आवश्यकता है। सरकारी काम केवल कागजों में होता है, जबकि गैर सरकारी संगठन ज्यादा प्रभावकारी कार्य कर सकते हैं। अत: इनको बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जंगलों को बचाना है तो किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आज बड़ी-बड़ी कंपिनयों के जाल में किसान फंसता जा रहा हैं उसको घटिया किस्म का बीज और खाद वितरित की जा रही है। इसके लिए किसानों को जागरूक करना होगा।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. एस. पी. जोशी ने बताया कि पर्यावरण एक प्रचलित शब्द है, जो दो घटकों - जैविक और अजैविक से मिलकर बना है। अजैविक घटकों में मिट्टी, पानी और हवा मुख्य हैं और यही जीवन का आधार हैं। इनको संरक्षित किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जंगल वहीं ज्यादा घने हैं, जहां मानव हस्तक्षेप नहीं हुआ। मानव हस्तक्षेप से ही जंगल नष्ट हुए हैं और जैविक घटकों की कमी होने लगी है। उन्होंने बताया कि 50 साल की उम्र का एक पेड़ अपने जीवन काल में 70 लाख रूपए की ऑक्सजीन मानव जाति को देता है और 50 साल में यही पेड़ लगभग 20 लाख रुपए की कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) अवशोषित करता है और मिट्टी के कटाव को रोककर लगभग 5 लाख रुपए की मिट्टी बचाता है।

उन्होंने बताया कि जब भी हमने पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ की तो हमें प्राकृतिक आपदा के रूप में भ्ाारी कीमत चुकानी पड़ी। यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करेंगे तो मानव जाति बची रहेगी। इसके लिए गांव-गांव एवं हर घ्ार-घ्ार में चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष लगाए जाने चाहिए। वृक्षों को बचाने के लिए ग्रामीण स्तर पर महिला मंगल दल एवं महिला समूहों की स्थापना होनी चाहिए, क्योंकि सामाजिक क्षेत्र और प्राकृतिक क्षेत्र को बचाने में महिलाएं सक्षम हैं।

इस अवसर पर दूरदर्शन के पूर्व संपादक श्री राजेन्द्र धस्माना ने कहा कि पर्यावरण, विकास और प्राकृतिक आपदाओं को हमें एक साथ देखना चाहिए, क्योंकि विकास के साथ विस्थापन प्राकृतिक आपदाएं और विकास की वे सारी बीमारियां हैं जो कम या ज्यादा हमारे पूरे जनजीवन को प्रभावित करती हैं। इसलिए जब भी हम विकास की बात करें तब हमें उन खतरों का सामाना भी करना होगा जो विकास के मॉडल से उपजती हैं इसलिए नीति-नियंताओं को चाहिए कि वह जब भी ऐसी परियाजनाओं पर काम करें उसमें जनता के हित सर्वोपरी हों और विस्थापन व प्राकृति संपदा को कम से कम नुकसान हो।

टिहरी के विधायक श्री किशोर उपाध्याय ने बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए अच्छी योजनाएं बनाई जानी चाहिए और पहाड़ों के लिए कोई भी योजना बनने से पहले वहां की भौगोलिक परिस्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। ग्रामीण स्तर पर किसानों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसके लिए चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों को लगाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण का भी प्रयास किया जाना चाहिए।

नगर पंचायत अध्यक्ष बड़कोट श्री बुद्धि सिंह रावत ने बताया कि पर्यावरण को बचाना है तो प्रदूषण को अपने घ्ार से हटाना होगा। उन्हांेने कहा कि पॉलिथीन की थैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

जनपक्ष आजकल के कार्यकारी संपादक श्री चारु तिवारी ने कहा कि स्थानीय धरोहरों को बचाने के प्रयास हों। उन्होंने कहा कि तिलाड़ी शहीदों ने जंगल बचाने की मुहिम छेड़ी थी और आज भी इसकी आवश्यकता है। 70 के दशक में जंगल बचाने के लिए वनांदोलनों का एक दौर चला जिससे चिपको आंदोलन का जन्म हुआ। इसमें महिलाओं और युवाओं ने भारी योगदान दिया। उन्होंने एक तर्क दिया कि एक मैच के दौरान जितनी बिजली एक स्टेडियम में खर्च होती है उससे कम से कम 7 गांवों को बिजली से रोशन किया जा सकता है।

मजदूर नेता प्रेम बल्लभ सुंदरियाल ने कहा कि आज आबादी बढ़ रही है और पानी कम हो रहा हैं इसके लिए सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा और यमुना का जल 30 प्रतिशत आबादी की पानी की आवश्यकता की पूर्ति करता है। सरकार द्वारा बड़े-बड़े डैम बनाकर लोगों को विस्थापित करने का षड्यंत्र किया जा रहा है।

इस मौके पर डा. विरेंद्र चंद्र, डा. रश्मि चंद्र, डा. बचन रावत, रमेश रावत, नगर पंचायत अध्यक्ष बुद्धि सिंह रावत, सकल चंद रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा आदि मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन प्रमोद रावत ने किया।