हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक्त नहीं.
दिन-रात दौड़ती दुनिया में,
जिंदगी के लिए ही वक्त नहीं।
मां की लोरी का एहसास तो है,
पर मां को मां कहने का वक्त नहीं.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नहीं।
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं।
आंखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नहीं.
दिल है गमों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नहीं।
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
कि थकने का भी वक्त नहीं.
पराय एहसास की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं।
तू ही बता ये जिंदगी,
इस जिंदगी का क्या होगा.
कि हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नहीं।
प्रस्तुति - संजीव चंद
Thursday, February 12, 2009
Wednesday, February 11, 2009
पंचकेदार
इससे पहले हमने आपको केदारनाथ के बारे में बताया था. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आपको पंचकेदारों से भी अवगत कराते हैं. उत्तराखंड यानी देव भूमि. जहां लोग अक्सर शांति की खोज के लिए आते-जाते रहते हैं.
पंचकेदारों की गणना इस प्रकार की जाती है.
केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर
केदारनाथ
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदाकिनी नदी के तट पर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हिन्दू धर्म में केदारनाथ सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है.
केदारनाथ एक अत्यंत पवित्र दर्शनीय स्थान है, जो चारों ओर से बर्फ की चादरों से ढ़की पहाड़ियों के केन्द्र में स्थित है. वर्तमान में मौजूद मंदिर 8वीं शती का है. भगवान शिव का यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है. इसे बड़े भारी पत्थरों को काटकर तैयार किया गया है. किस तरह इतने बड़े पत्थरों को तैयार किया गया होगा, यह अपने आप में एक अजूबा है. मंदिर में पूजा करने के लिए "गर्भगृह' और मंडप हैं, जहां पर श्रद्धालुजन पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर के अंदर भगवान शिव को सदाशिव के रूप में पूजा जाता है.
मदमहेश्वर
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के केदारनाथ से विलुप्त होने के बाद उनकी नाभि फिर से मदमहेश्वर में उदित हुई. नाभिनुमा लिंग के रूप में यहां भगवान शिव की पूजा होती है. चौखंबा पर्वत के आधार पर 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर उत्तर भारतीय शैली का है. यहां का पानी इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही पाप से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती हैं. यहां की प्राकृतिक छटा अत्यधिक मनोहारी है. यहां हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पर्वत, चौड़ी-संकरी घाटी और जंगल हैं, जो सिर्फ गर्मियों में ही हरियाली देते हैं. यहां से केदारनाथ और नीलकंठ पर्वत देखे जा सकते हैं. निकटवर्ती पहाड़ों का सम्पूर्ण वृत्त भगवान शिव से संबद्ध है जो यहां की सर्वसुंदर जगहों में से एक है.
भारत में हरगौरी की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा जो एक मीटर से भी ज्यादा ऊंची है, यहां के काली मंदिर में विराजमान है. मदमहेश्वर नदी के उद्गम के पास का शिव मंदिर दूसरा केदार है. इकलौते पुजारी एवं स्वयंसेवियों से प्रशासित इस मंदिर की देखरेख केदारनाथ ट्रस्ट करता है. 6 महीनों की सर्दी में सिर्फ शिवलिंग ही यहां रह जाता है. जबकि चांदी की मूर्तियां औपचारिक रूप से पूजा के लिए ऊखीमठ ले जाई जाती हैं. पास ही स्थित है सरस्वती कुण्ड, जहां पितरों को तर्पण किया जाता है.
तुंगनाथ
केदारनाथ मिथक के अनुसार यहां भगवान शिव की भुजा उभरी थी. ऊखीमठ से 23 किमी दूर, चंदनाथ पर्वत की 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर पंचकेदार में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है. तुंगनाथ क्षेत्र की पवित्रता अपार मानी जाती है. तुंगनाथ की चोटी तीन जलस्रोतों का उद्गम है आकाशकामिनी नदी प्रस्फुटित है.
पर्वत, जंगलों एवं घास के मैदानों से गुजरता हुआ रास्ता हमें तुंगनाथ तक पहुंचाता है. यहां से करीब एक घंटे की चढ़ाई हमें चन्द्रशिला के मनोहारी दृश्यों के दर्शन तक पहुंचाती है. अद्भुत चौखंबा, केदारनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री चोटियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही हैं. गढ़वाल मंडल वर्ष भर (दिसंबर और जनवरी के बर्फीले महीनों को छोड़कर) चंद्रशिला के लिए शीतकालीन पर्वतारोहण का आयोजन करता है. मंदिर में शिवलिंग के अलावा आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति प्रतिस्थापित है. तुंगनाथ में नंदादेवी मंदिर भी स्थित है. पास ही स्वर्ग से उतरता हुआ-सा प्रतीत होता आकाशलिंग प्रपात है जिसे देखकर मन रोमांचित होने लगता है.
रुद्रनाथ
इस स्थान पर भगवान शिव के मुख का पूजन किया जाता है. रुद्रनाथ मंदिर 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक मैदान में स्थित है. जहां पहुंचने के लिए काफी ऊंची-ऊंची चोटियों को पार करना पड़ता है. श्रद्धालुजन अपने पूर्वजों के धार्मिक संस्कार पूरे करने के लिए रुद्रनाथ आते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात आत्मा यहां स्थित वैतरणी नदी को पार करके आगे बढ़ती है. यह गोपेश्वर से 23 किमी दूरी पर स्थित है. जिससे 5 किमी तक ही गाड़ियों का आवागमन है. शेष 18 किमी की यात्रा पैदल ही तय करनी होती है. इस पैदल के रास्ते में कई मनोहारी दृश्य सामने आते हैं तथा ऊंची पहाड़ियों पर से गुजरना पड़ता है. मंदिर चारों ओर से कई छोटे-छोटे तालावों से घिरा हुआ है. जैसे सूर्यकुण्ड, चन्द्रकुण्ड, तारा कुण्ड, मानस कुण्ड इत्यादि, जबकि पीछे की ओर, ऊपर, नंदा देवी, नंदा घंटी, त्रिशूल आदि ऊंची चोटियां हैं. रुद्रनाथ जाने वाले रास्ते पर ही 3 किमी आगे चलने पर अनुसुइया देवी का मंदिर है.
कल्पेश्वर
यह वह स्थान है जहां भगवान शिव के केश प्रकट हुए थे. यह स्थान अप्सरा उर्वशी और क्रोधी ऋषि दुर्वासा, जिन्होंने वरदान देने वाले कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, के लिए प्रसिद्ध है. यहां साधु अर्घ्य देने के लिए पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या करने आते हैं. तीर्थ यात्री 2134 मीटर की ऊंचाई पर, एक पहाड़ पर स्थित मंदिर में पूजा करते हैं, जिसका रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है. तीर्थयात्री मंदिर में चट्टान में स्थित, भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए गुफा के अंदर एक किमी चलना पड़ता है.
पंचकेदारों की गणना इस प्रकार की जाती है.
केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर
केदारनाथ
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदाकिनी नदी के तट पर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हिन्दू धर्म में केदारनाथ सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है.
केदारनाथ एक अत्यंत पवित्र दर्शनीय स्थान है, जो चारों ओर से बर्फ की चादरों से ढ़की पहाड़ियों के केन्द्र में स्थित है. वर्तमान में मौजूद मंदिर 8वीं शती का है. भगवान शिव का यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है. इसे बड़े भारी पत्थरों को काटकर तैयार किया गया है. किस तरह इतने बड़े पत्थरों को तैयार किया गया होगा, यह अपने आप में एक अजूबा है. मंदिर में पूजा करने के लिए "गर्भगृह' और मंडप हैं, जहां पर श्रद्धालुजन पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर के अंदर भगवान शिव को सदाशिव के रूप में पूजा जाता है.
मदमहेश्वर
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के केदारनाथ से विलुप्त होने के बाद उनकी नाभि फिर से मदमहेश्वर में उदित हुई. नाभिनुमा लिंग के रूप में यहां भगवान शिव की पूजा होती है. चौखंबा पर्वत के आधार पर 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर उत्तर भारतीय शैली का है. यहां का पानी इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही पाप से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती हैं. यहां की प्राकृतिक छटा अत्यधिक मनोहारी है. यहां हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पर्वत, चौड़ी-संकरी घाटी और जंगल हैं, जो सिर्फ गर्मियों में ही हरियाली देते हैं. यहां से केदारनाथ और नीलकंठ पर्वत देखे जा सकते हैं. निकटवर्ती पहाड़ों का सम्पूर्ण वृत्त भगवान शिव से संबद्ध है जो यहां की सर्वसुंदर जगहों में से एक है.
भारत में हरगौरी की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा जो एक मीटर से भी ज्यादा ऊंची है, यहां के काली मंदिर में विराजमान है. मदमहेश्वर नदी के उद्गम के पास का शिव मंदिर दूसरा केदार है. इकलौते पुजारी एवं स्वयंसेवियों से प्रशासित इस मंदिर की देखरेख केदारनाथ ट्रस्ट करता है. 6 महीनों की सर्दी में सिर्फ शिवलिंग ही यहां रह जाता है. जबकि चांदी की मूर्तियां औपचारिक रूप से पूजा के लिए ऊखीमठ ले जाई जाती हैं. पास ही स्थित है सरस्वती कुण्ड, जहां पितरों को तर्पण किया जाता है.
तुंगनाथ
केदारनाथ मिथक के अनुसार यहां भगवान शिव की भुजा उभरी थी. ऊखीमठ से 23 किमी दूर, चंदनाथ पर्वत की 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर पंचकेदार में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है. तुंगनाथ क्षेत्र की पवित्रता अपार मानी जाती है. तुंगनाथ की चोटी तीन जलस्रोतों का उद्गम है आकाशकामिनी नदी प्रस्फुटित है.
पर्वत, जंगलों एवं घास के मैदानों से गुजरता हुआ रास्ता हमें तुंगनाथ तक पहुंचाता है. यहां से करीब एक घंटे की चढ़ाई हमें चन्द्रशिला के मनोहारी दृश्यों के दर्शन तक पहुंचाती है. अद्भुत चौखंबा, केदारनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री चोटियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही हैं. गढ़वाल मंडल वर्ष भर (दिसंबर और जनवरी के बर्फीले महीनों को छोड़कर) चंद्रशिला के लिए शीतकालीन पर्वतारोहण का आयोजन करता है. मंदिर में शिवलिंग के अलावा आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति प्रतिस्थापित है. तुंगनाथ में नंदादेवी मंदिर भी स्थित है. पास ही स्वर्ग से उतरता हुआ-सा प्रतीत होता आकाशलिंग प्रपात है जिसे देखकर मन रोमांचित होने लगता है.
रुद्रनाथ
इस स्थान पर भगवान शिव के मुख का पूजन किया जाता है. रुद्रनाथ मंदिर 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक मैदान में स्थित है. जहां पहुंचने के लिए काफी ऊंची-ऊंची चोटियों को पार करना पड़ता है. श्रद्धालुजन अपने पूर्वजों के धार्मिक संस्कार पूरे करने के लिए रुद्रनाथ आते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात आत्मा यहां स्थित वैतरणी नदी को पार करके आगे बढ़ती है. यह गोपेश्वर से 23 किमी दूरी पर स्थित है. जिससे 5 किमी तक ही गाड़ियों का आवागमन है. शेष 18 किमी की यात्रा पैदल ही तय करनी होती है. इस पैदल के रास्ते में कई मनोहारी दृश्य सामने आते हैं तथा ऊंची पहाड़ियों पर से गुजरना पड़ता है. मंदिर चारों ओर से कई छोटे-छोटे तालावों से घिरा हुआ है. जैसे सूर्यकुण्ड, चन्द्रकुण्ड, तारा कुण्ड, मानस कुण्ड इत्यादि, जबकि पीछे की ओर, ऊपर, नंदा देवी, नंदा घंटी, त्रिशूल आदि ऊंची चोटियां हैं. रुद्रनाथ जाने वाले रास्ते पर ही 3 किमी आगे चलने पर अनुसुइया देवी का मंदिर है.
कल्पेश्वर
यह वह स्थान है जहां भगवान शिव के केश प्रकट हुए थे. यह स्थान अप्सरा उर्वशी और क्रोधी ऋषि दुर्वासा, जिन्होंने वरदान देने वाले कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, के लिए प्रसिद्ध है. यहां साधु अर्घ्य देने के लिए पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या करने आते हैं. तीर्थ यात्री 2134 मीटर की ऊंचाई पर, एक पहाड़ पर स्थित मंदिर में पूजा करते हैं, जिसका रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है. तीर्थयात्री मंदिर में चट्टान में स्थित, भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए गुफा के अंदर एक किमी चलना पड़ता है.
Subscribe to:
Posts (Atom)